Success Stories
कड़ी मेहनत और लगन से खारे-खारे एलोवीरा में जीवन का मिठास ढंूढा परलीका के युवा प्रगतिशील किसान अजय स्वामी ने।
परलीका के युवा प्रगतिशील किसान अजय स्वामी पर यह पंक्तियां सटीज बैठती है। जब होश संभाला तो सिर से पिता का साया उठ गया। घर की खस्ता हालात ने स्कुल के रास्तों को संघर्ष की राह की ओर मोड़ दिया। अजय का कुलांचे भरता बचपन घर की जिम्मेदारी की भेट चढ गया। मगर अजय अपनी मुसीबतों के आगे घुटने टेकने की बजाय पुरा जोर आत्मविश्वास के साथ अपने पथ पर बढता गया। मामा के पास चाय का ढाबा संभालते हुए मन में एक बात और पक्की हो गई कि कुछ ऐसा काम करूंगा जिससे सेवा भी हो और जीवन
यापन भी। आज डेढ दशक की कड़ी मेहनत और लगन का ही परिणाम है कि नेचुरल हेल्थ केयर संस्था के प्रधान अजय स्वामी एलोवेरा जूस व अन्य प्रोडक्ट से हनुमानगढ जिले के चमकते सितारे बन गऐ।
हनुमानगढ जिले की नोहर तहसील के साहित्यिक गांव के नाम से विख्यात परलीका में जन्में अजय स्वामी कोई कहानीकार या गीतकार से कम नहीं आंके जा सकते । 28 वर्षीय अजय भले की आठवीं तक स्कुल जा पाए मगर उनका एलोवेरा जूस की संघर्ष भरी कहानी शोध का विषय हो सकती है। बातचीत में अजय ने बताया मेरे मन में बचपन से ही कुछ हटकर व चुनौतीपुर्ण करने की ललक थी। इस दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में आया एवं मुझे वहां से औषधीय फसलों की खेती व उनके प्रसंस्करण की प्रेरणा व जानकारी प्राप्त हुई, वहीं से एलोवेरा की खेती व ज्यूस बनाने की भी प्रेरणा मिली।
अजय परम्परागत खेती से होने वाली आमदनी की परवाह न करते हुए भादरा तहसील के मुन्सरी गांव में अपने मामा के यहां दो बीघा में एलोवेरा की खेती की। फसल तैयार होने में तीन बरस लग गए। सभी लोगों ने अजय का हौसला कमजोर किया कि तीन साल में छः फसलें हो जाती, एलोवेरा में ऐसा क्या मिलेगा। मगर अजय का इरादा अटल रहा। इसी दौरान अजय में कृषि विज्ञान केन्द्र के अधिकारियों व वैज्ञानिकों से इस सम्बन्ध में बात की। लोग जिस बात को लेकर हतोत्साहित करते थे कृषि से जुड़े इन लोगों ने अजय की पीठ थपथपाई। अजय को संबल मिला और वह इस दौरान कई राज्य स्तरीय, जिला स्तरीय कृषि प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने लगा व भ्रमण करने लगा। खेती पकने पर अजय के सामने एक नई चुनौती मुंह बाए खड़ी थी कि अपनी फसल को किस मंडी में लेकर जावे। पंजाब, राजस्थान और उत्तरप्रदेश की कई दवा कंपनियों व अन्य संस्थाओं के भ्रमण के बाद अजय को निराशा हाथ लगी। मगर वह निराश नहीं हुआ। घूमते-घूमते अजय को लगा कि क्यों ना खुद एलोवेरा ज्यूस तैयार करूं। विचार जब धरातल पर उतरा तो घरेलू मिक्सी से अजय ने कड़ी मेहनत करते हुए हजारों लीटर एलोवेरा ज्यूस बना डाला। ज्यूस बन गया पर खरिदे कौन और बेचे कौन। फिर एक नई चुनौती, अजय ने अपने आस पड़ोस, गली मोहले से यह काम भी शुरू किया। फिर तो गांव-गांव और शहर-शहर भी शुरू हो गए। एलोवेरा का करीब 300 प्रजातियों में सबसे ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक व गुणवत्ता की दृष्टि से उत्तम बारमंडीसिस की खेती अब इसको एक युवा प्रगतिशील कास्तकार के रूप में पहचान दिला चुकी थी।
आज यह युवा दो बीघा एलोवेरा से शुरू की खेती को राजस्थान के कई स्थानों पर कई मरबा में करवाता है। वहीं घरेलू मिक्सी से शुरू हुई यात्रा स्टील की बड़ी मशीन तक पहुंच गई है। आज लगभग 30 कंपनियों को माल तैयार करके सप्लाई करते हैं और इनके प्रोडक्ट की मांग इतनी बढ गई है कि कंपनियां खुद चला कर पूछने लगी है कि नया माल कब बना रहे हो।
अजय के उत्पाद में एलोवेरा ज्यूस, आंवला ज्यूस, त्रिफला ज्यूस, गिलोय ज्यूस, करेला ज्यूस, एलोवेरा साबुन, एलोवेरा क्रीम, एलोवेरा शैंपू, शिकाकाई शैंपू, हेयर पाउडर, एलोवेरा, एलोवेरा स्किन जैल, शैंपू, क्रीम, साबुन, दर्द निवारक तेल, आंवला कैंडी, आंवला ज्यूस, त्रिफला ज्यूस आदि कई उत्पाद के साथ-साथ देसी फोफलिया, सांगरी आदि सब्जियां, आचार व बड़ी, पापड़ आदि विभिन्न खाद्य उत्पादों का उत्पादन भी कर रहे हैं। गौरतलब है कि बारमंडीसिस किस्म के एलोवेरा का ज्यूस अमेरिका में तेरह सौ रूपए प्रति लीटर के किसाब से मिलता है वहीं भारत में अजय मात्र रू. 200 में उससे अच्छी गुणवत्ता के साथ लोगों को दे रहे है। इस प्रकार कृषि क्षेत्र में नए प्रयोग कर अजय ने मिसाल कायम की है।
दो बीघा कृषि भूमि से शुरूआत करने वाले अजय बताते हैं कि आज वे 50 बीघा जमीन पर एलोवेरा का उत्पादन कर रहे हैं तथा प्रति एकड़ लगभग पचास से अस्सी हजार रूपए प्रति वर्ष आमदनी होती है, इसके साथ- साथ अलग-अलग हर्बल जड़ी बुटियों के द्वारा एलोवेरा के साथ प्रयोग कर नए उत्पाद तैयार कर मार्केटिंग करते हैं जिससे शत प्रतिशत प्राकृतिक दवा तैयार की जाती है। राजस्थान रो हर्बल उत्पाद नाम से पंजीकृत संस्था के माध्यम से अजय एलोवेरा के साथ-साथ राजस्थान की विभिन्न जड़ी बुटियों का प्रयोग करके बहुत से उत्पाद तैयार कर रहे हैं व थोड़े समय में ही लगभग 45 से ज्यादा उपयोगी व आकर्षक उत्पाद तैयार कर चुके है। प्राकृतिक व रसायन मुक्त होने के कारण इनकी उत्पाद मार्केट में काफी चर्चा में है साथ ही इनकी उत्पादों की मांग भी दिन प्रतिदिन बढती जा रही है।
विभिन्न मेलों के दौरान भी इनकी स्टाल जिला व राज्य स्तर पर काफी बार प्रथम स्थान पर रह चुकि है तथा इनके उत्कर्ष कार्य के लिए दो बार जिला कलेक्टर तथा राजूवास बीकानेर के कुलपति प्रो.(डाॅ.) कर्नल ए. के. गहलोत भी इन्हें सम्मानित कर चुके है।
नरेश जांगिड ने मधुमक्खीपालन व्यवसाय को बनाया प्रगति का आधार
वही सबसे तेज चलता है जो अकेला कुछ अलग करने की चाह रख चलता है। प्रत्येक नया कार्य पहले असम्भव नजर आता है। कुछ अलग करने की चाह का सपना लेकर प्रगतिशील किसान नरेश जांगिड़ ने अकेले मधुमक्खीपालन को सफलता का मार्ग बनाया और प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ।
परलीका, नोहर के युवा किसान के कुछ अलग करने के सपने ने उसे यहां ऐसे मुकाम पर पहुंचाया की उसे युवा पीढी के प्रेरणा का स्त्रोत बना दिया। पारंपरिक खेती से जाल्लुक रखने वाले किसान नरेश जांगिड़ के पास मात्र 6 बीघा सिंचित और असिंचित जमीन है। घटती जोत व एकल खेती से उसे बस गुजर-बसर करने में ही सक्षम था लेकिन अधिक आय के सपने और कुछ अलग करने की चाह में वह कृषि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में तथा केन्द्र के विशेषज्ञों से सलाह व प्रशिक्षण लेकर मधुमक्खी पालन करने का निश्चय किया।
नरेश जांगिड़ ने शुरूआत में 25 बक्सों से मधुमक्खी पालन व्यवसाय प्रारम्भ किया। अब कुल 200 बक्से है जिनसे प्रति वर्ष औसतन 40 किलोग्राम प्रति बक्सा शहद प्राप्त होता है जो की बाजार भाव लगभग औसतन 100 रूपये प्रतिकिलो के भाव बिक जाता है।
इस प्रकार अब उसे 200 बक्सों से कुल 800000 रूपये की आमदनी होती है। जिसमें मधुमक्खी के भोजन की व्यवस्था पर 50000 रूपये, मजदुरी पर 72000 रूपये प्रति मजदुर व यातायात पर 60000 रूपये का खर्च निकालने के बाद शुद्ध 546000 रूपये प्रतिवर्ष बच जाते है। उन्होने बताया की वे लगातार कृषि विज्ञान केन्द्र की गतिविधियों से जुड़े रहे है जिनसे उन्हें आगे बढने का अवसर मिला है और विशेषज्ञों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखने एवं महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने से उनका रोजगार सफल हुआ।
किसानः नरेश जांगिड
पिताः सोहन लाल जांगिड
गांवः परलीका, नोहर
सम्पर्कसूत्रः 9001348277
बकरीपालन व्यवसाय से मिले नये आयाम
अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी हर युवक का सपना होती है, लेकिन बढती बेरोजगारी के बीच यह किसी चुनौती से कम नहीं है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते है, जो स्वरोजगार को चुनकर बेरोजगार युवाओें को नई राह दिखा रहें है एक ऐसे युवा किसान है बजरंगलाल जो बकरीपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाकर समृद्धि प्राप्त कर रहे हैं।
बजरंग एक मध्यम परिवार के 28 वर्शीय युवा किसान है जिसके परिवार का जीवोपार्जन का मुख्य व्यवसाय खेती ही रहा है। क्योंकि वर्षा आधारित कृषि से आमदनी कम होने से परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होती जा रही थी इस वजह से बजरंग का खेती से मोह भंग होने लगा। परन्तु कृषि विज्ञान केन्द्र नोहर के वैज्ञानिको से मुलाकात और उनके सुझाव पर बजरंग ने खेती के साथ बकरीपालन व्यवसाय करने का निश्चय किया।
सर्वप्रथम वैज्ञानिकों द्वारा उसे बकरीपालन व्यवसाय पर प्रशिक्षण दिया गया और अच्छी आमदनी के लिए द्विउद्देश्य वाली अच्छी नस्ल के चुनाव के लिए प्रेरित किया। तत्पश्चात उसने द्विउद्देश्य वाली नस्ल की बीस बकरी व एक बकरा खरीद कर अपने व्यवसाय की शुरूआत की और उनके पोषक चारे के लिए वैज्ञानिको के सहयोग से एक अजोला की यूनिट भी लगाई। वैज्ञानिको द्वारा समय-समय पर भ्रमण के दौरान दिये गये सुझाव, सलाह, मार्गदर्शन एवं बजरंग की रूचि, लगन व मेहनत की बदोलत उसका व्यवसाय दिन-दुगूनी रात-चोगूनी उन्नति कर रहा है खेती से चारे का प्रबन्ध हो जाने पर कृषि उत्पाद का सदुपयोग भी हो जाता है प्रशिक्षण व विशेषज्ञों से प्राप्त जानकारी एवं नवीनतम तकनीकों के अनुसार हरे चारे के अभाव के समय वह हरे चारे का संरक्षण भी करता है तथा टीकाकरण व कृमिनाशक दवाओं और खनिज लवणों का उपयोग भी करता है जिससे उसके व्यवसाय पर होने वाल खर्च भी काफी कम हुआ है इस प्रकार बजरंग अपनी अतिरिक्त आमदनी से गदगद है वहीं दूसरी तरफ बकरीपालन व्यवसाय को उंचाईयों पर पहुंचाने का बिगुल बजा दिया। सफलता का पूरा श्रेय अपने परिवार एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, नोहर को देते है।
<!--?php } -->